दिनांक 14 मार्च को मैं गांधी चौक जिला पन्ना मध्य प्रदेश से गुजर रहा था इस समय मैंने एक नाबालिग लड़की को दो खाबो के बीच में बंधी हुई रस्सी पर थाली में घुटनों के भर बैठे हुए हाथ में लकड़ी लिए रस्सी पर खिसकते हुए देखा। बहुत सारे दर्शक इस खेल को देख रहे थे लड़की की मां लड़की की तरफ नजर लगाए बैठी थी
लड़की का बड़ा भाईक कटोरा लेकर लोगों से पैसे मांग रहा था जब मैंने लड़की की मां से पूछा की कहां के रहने वाले हो, तो उन्होंने बताया छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं और गरीबी के कारण अपने पेट पालने के लिए यह खेल दिखाते हैं उनके साथ ससुर है उनका भी खर्च चलाना पड़ता है चार बच्चे हैं इसलिए खर्चा नहीं पूजता है दो बच्चे घर रहते हैं सरकारी स्कूल जाते हैं दो बच्चे साथ में खेल दिखाकर पैसे मांगते हैंऔर जब लौटकर जाएंगे तब दूसरे बच्चे साथ में आएंगे और यह घर पर रह जाएंगे
क्या यह वीडियो देखकर आपको लगता है कि बच्ची जिसकी स्कूल जाकर अपना भविष्य बनाने की उम्र है एजुकेशन एक्ट २००९ में बना था जिसके अनुसार 14 वर्ष के बच्चे को मुक्त और अनिवार्य शिक्षा देने का प्रावधान है 2002 संविधान के 86 वे संशोधन द्वारा यह मौलिक अधिकार अनुच्छेद 21 से भाग 3 के तहत प्राप्त है निजी स्कूलों में 25 प्रतिशत बच्चों को बिना शुल्क के नामांकन करनेका प्रावधान है गुणवत्ता समेत सभी पहलुओं पर निगरानी के लिए प्रारंभिक शिक्षा के लिए राष्ट्रीय आयोग बनाने का प्रावधान है एक निश्चित शिक्षक छात्र अनुपात की सिफारिश में की गई है उसके बाद भी यहबच्ची जो कक्षा 1 तक पड़ी है और इसका भाई जो कक्षा तीन तक पढ़ा है लड़की जिसकी जिंदगी शिक्षा ग्रहण करने की है
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा मात्रा देने से , न बेटी बचेगी और नाही बढ़ेगी। उसके लिए कुछ करना होगा जिस तरह से पहले होम डिलीवरी होती थी लेकिन सरकार ने जच्चा को अस्पताल ले जाने के लिए गाड़ी की व्यवस्था कर दी और अस्पताल ले जाने वाली आशा या आंगनवाड़ी कार्यकर्ता को प्रत्येक जच्चा के हिसाब से पैसा देती है जच्चा को भी पैसा देती है जिसकी वजह से होम डिलीवरी होना लगभग बंद हो गई है। इसी तरफ स्कूल ले जाने के लिए सरकार बाहन की व्यवस्था कर दें और बच्चे को तैयार करने वाली माता-पिता को पैसा दें और बच्चे को भी उपस्थित पर प्रतिमाह छात्रवृत्ति महंगाई के अनुपात में भुगतान करें तो कोई बच्चा-बच्ची शिक्षा से वंचित नहीं रहेगा।
केंद्र सरकार कहती है ऐसा करने के लिए पैसा नहीं है और राज्य सरकार भी यही तर्क देती है बड़े-बड़े उद्योगपतियों को हजारों करोड़ों रुपए माफ करने के लिए पैसा है करोड़ों रुपए के नेताओं के दफ्तर पार्टियों के कार्यालय बनाने के लिए पैसा है विधायक और सांसद खरीदने के लिए पैसा है करोड़ों रुपए मंदिरों के जीर्णोद्धार के लिए पैसा है करोड़ों करोड़ों रुपए पुजारी को वेतन देने के लिए कैसा है लेकिन बच्चों को पढ़ने के लिए पैसा नहीं है असली नियत पढ़ने की नहीं है पैसा एक मात्र बहना है
जो शिक्षक शासकीय स्कूलों में पढाते ते हैं उनसे सरकार के तमाम दूसरे काम करवाती हैं जिन को नहीं करने पर नौकरी जाने का खतरा रहता है लेकिन क्लास नियमित नहीं लगने प। शिक्षकों की कमी प। कोर्स पूरा नहीं होने पर, शिक्षा की गुणवत्ता अच्छी नहीं होने पर, किसी की नौकरी जाने का कोई खतरा नहीं रहता